12 January 2025 12:58 AM

ख़बरमंडी न्यूज़, बीकानेर। आज तक आपने यही सुना होगा कि आपराधिक मामला चलने के दौरान विदेश जाने की अनुमति नहीं होती। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। सीकर के न्यायालय ने एक ऐसा आदेश पारित किया जिसके बाद इस भ्रम से मुक्ति मिल जाएगी।
दरअसल, मामला सुजानगढ़ निवासी परीक्षित से जुड़ा है। मामले में न्यायालय अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 3 सीकर के पीठासीन अधिकारी हिमांशु कुमावत ने सुजानगढ़ निवासी आरोपी परीक्षित के विरुद्ध वाहन दुर्घटना का आपराधिक प्रकरण विचाराधीन होने के बावजूद भ्रमण और रोजगार हेतु विदेश जाने की अनुमति देने का महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। आरोपी की ओर से बीकानेर के एडवोकेट अनिल सोनी ने पैरवी करते हुए दलील दी थी कि भले ही आरोपी पर वाहन चलाते हुए दुर्घटना मृत्यु करने का प्रकरण विचाराधीन है, लेकिन उससे पहले आरोपी भारत का नागरिक है, जिसे भारतीय संवैधानिक अधिकारों के तहत आजीविका चलाने और भ्रमण करने का अधिकार है। इसी अधिकार के तहत आरोपी भी विदेश यात्रा करने का अधिकार रखता है लेकिन आरोपी के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता की धारा 281,106(1) के तहत मुकदमा विचाराधीन होने के कारण वह विदेश यात्रा करने में असमर्थ है। जिसके लिए न्यायालय की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। जबकि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की अधिसूचना 25 अगस्त 1993 के अनुसार किसी ऐसे व्यक्ति जिसके विरुद्ध भारत के किसी भी न्यायालय में आपराधिक प्रकरण लंबित हो उसे उक्त अधिसूचना में उल्लेखित शर्तों के अधीन विदेश यात्रा करने की अनुमति प्रदान की जा सकती है। न्यायालय ने आरोपी परीक्षित का प्रार्थना पत्र स्वीकार कर विदेश यात्रा करने की अनुमति दी है। न्यायालय ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए आरोपी को विदेश जाने की अनुमति इस शर्त के साथ दी जाती है कि विदेश जाने पर न्यायालय में विचाराधीन चल रहे मुकदमे के विचारण में रुकावट पैदा नहीं करेगा। वहीं आरोपी स्वयं या उसका प्रतिनिधि तारीख पेशी पर हाजिर रहेगा।
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